Supreme Court Judgement on IPC Section 498a in 2019 || आईपीसी धारा 498 ए पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले
Supreme Court Judgement on IPC Section 498a in 2019 || आईपीसी धारा 498 ए पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले
Supreme Court Judgement on IPC Section 498a:- नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में मैं आपको बताऊंगी इस साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए IPC की धारा 498 ए पर महत्वपूर्ण फैसलों के बारे में । साथ ही उनके डाउनलोड लिंक भी दिए गए हैं । आपको यह पोस्ट पसंद आएगा और साथ में दिए गए जजमेंट की डाउनलोड कॉपी भी आपके काम आएंगे । सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए (IPC Section 498A) धारा 498 ए के महत्वपूर्ण निर्णय निम्नलिखित है ।
रूपाली देवी वर्सेस उत्तर प्रदेश
इस मामले पर तीन जजों की न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया । इस बेंच में सीजेआई रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एन नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल शामिल थे । इस मामले में यह विचार किया गया कि जब एक पत्नी के साथ उसके पति और उसके रिश्तेदारों के द्वारा क्रूरता करी जाती है । और वह पत्नी वैवाहिक घर छोड़कर अपने माता पिता के स्थान पर रहने चली जाती है या अपने माता पिता के घर में शरण लेती है तो इस दशा में पत्नी वहां पर स्थित अदालतों में IPC धारा 498 ए के तहत शिकायत दर्ज करवा सकती है ।
पीठ ने इस फैसले में यह कहा कि जब कोई क्रूरता किसी महिला के साथ अपमानजनक मौखिक रूप से किया जाता है । गालियां दी जाती हैं या फिर उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है । इस तरह की क्रूरता वहां भी जारी रह सकती है जहां पर वह महिला शरण लेती है । चाहे वह उसके मां-बाप का ही घर क्यों ना हो ।
इसलिए इस केस के अंतर्गत यह माना गया कि जब पति और उसके रिश्तेदारो के द्वारा किसी महिला के साथ मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और वह महिला मजबूर होकर अपने वैवाहिक घर को छोड़कर चली जाती है या भगा दी जाती है । उसके बाद वह महिला जहां भी शरण लेती है उस जगह से भी आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अदालतों में शिकायत दर्ज करवा सकती है ।
बात करते हैं दूसरे केस की तो इस केस में यह कहा गया कि जिस महिला के साथ क्रूरता की गई है उसके लिए यह जरूरी नहीं है कि वही शिकायत दर्ज करें । उसकी बिहाफ पर कोई भी शिकायत को दर्ज करवा सकता है ।
रश्मि चोपड़ा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एनके जोसेफ की खंडपीठ ने किया । और इस बात पर विचार किया कि जब किसी महिला के साथ कोई अत्याचार किया जाता है । मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो उसकी शिकायत उस महिला को खुद करनी चाहिए या फिर उसकी जगह उसका संज्ञान कोई भी दे सकता है ।
इस केस में माना गया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए इस पर विचार नहीं करती की धारा 498 ए के तहत अपराध की शिकायत पीड़ित ही करेगी जो महिला उसके शिकार हुई है । बल्कि आई पी सी धारा 498 ए के अंतर्गत किसी भी महिला के साथ अगर कोई अत्याचार होता है तो उसकी शिकायत कोई भी दर्ज करवा सकता है ।
इस केस के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498 ए के दुरुपयोग को रोकने के दिशा निर्देश दिए।
राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति ए के गोयल और यू यू ललित के पीठ ने इस केस के अंतर्गत यह स्थापित किया गया और कहा गया कि धारा 498ए इसलिए बनाई गई थी । ताकि पति और उसके रिश्तेदारों के द्वारा अगर पत्नी पर या किसी महिला पर दुराचार किया जाता है । उसके साथ क्रूरता की जाती है तो उसके बचाव में वह महिला धारा 498 ए का इस्तेमाल करके अपने आप को बचा सकती है ।
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया था लेकिन धारा 188 के अंतर्गत बड़ी संख्या में ऐसे मामले दर्ज किए जाने लगे जो कि चिंता का विषय बन गए । इसके विषय में कुछ निर्देश जारी किए गए ।
धारा 498 ए और उससे जुड़े जो अपराध है उनकी शिकायत की जांच केवल उस एरिया के जांच अधिकारी द्वारा की जा सकती है । शिकायत होने के 1 महीने के भीतर ऐसे जांच अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी । ऐसे मामलों में जहां कोई समझौता होता है । वहां पर जिला या फिर सेशन न्यायाधीश या फिर उस जिले के द्वारा नामित किया गया कोई अन्य वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी के लिए खुला होगा । कि वह आपराधिक कार्यवाही का निपटान करें जिस भी विषय में शिकायत दर्ज की गई है ।
भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों के संबंध में पासपोर्ट या फिर रेड कॉर्नर नोटिस जारी नहीं होने चाहिए
वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी के यह छूट होगी कि वह दोनों पार्टियों के बीच जो विवाहित विवाद उत्पन्न हो गए हैं । उनका निपटारा करवाएं
परिवार के सभी सदस्य या फिर ऐसे सदस्य जो कि राज्य से बाहर रहते हो या विदेश में रहते हो व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होगी । उनका ट्रायल अदालत में वीडियो या ऑडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की जा सकती है ।
और यह दिशानिर्देश शारीरिक चोट या फिर मृत्यु के संबंध में अपराधों पर लागू नहीं होंगे ।
पति के द्वारा विवाहेतर संबंध बनाना क्रूरता नहीं है ।
प्रकाश बाबू बनाम कर्नाटक राज्य
इस मामले में यह कहा गया कि केवल इसलिए कि पति का कोई विवाहेतर संबंध है और पत्नी के मन में यह लेकर संदेह है । उसे मानसिक क्रूरता नहीं माना जाएगा जिसे की भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए/ 306 लागू हो । मामला यह था कि पति का विवाहेतर संबंध था जिसको पत्नी बहुत ही ज्यादा आहत महसूस करते थे उसे झेल पाने में असमर्थ हो रही थी । जिसके कारण उसने अपने जीवन को खत्म कर लिया आत्महत्या कर ले ।
हाई कोर्ट ने धारा 498ए के तहत पति को दोषी ठहराते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था । और पत्नी की आत्महत्या का दोषी ठहराया था । इस मामले में कोर्ट ने कहा कि विवाहेतर संबंध अवैध और अनैतिक काम हो सकता है । लेकिन साबित करना जरूरी होता है । और पीठ ने उसकी सजा को रद्द कर दिया था ।
तलाक के लंबे समय के बाद धारा 498 ए के तहत मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता
मोहम्मद मियां बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
इस केस के अंतर्गत यह माना के यहां की भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए और दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 के तहत मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता । जबकि दोनों का तलाक बहुत लंबे अरसे पहले ही हो गया हो । इस मामले में एफआईआर तब दर्ज की गई जबकि तलाक को 4 साल हो चुके थे ।
हीरालाल बनाम राजस्थान राज्य
इस केस में न्यायमूर्ति आर एस नरीमन और न्यायमूर्ति मोहन एंड शांता नगोदर की पीठ ने यह कहा कि उत्पीड़न क्रूरता की तुलना में काफी हद तक कम होता है
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very goòd and helpful citration