
A Brief Description of The Different Theories of The Law || विधिशास्त्र के विभिन्न विचारधाराओं का संक्षिप्त वर्णन
Description of The Different Theories of The Law– विधिशास्त्र का वर्गीकरण करने से पूर्व इस की विषय वस्तु का ध्यान कर लेना अत्यंत आवश्यक है। जैसा कि हम जानते हैं कि विधिशास्त्र विधि की प्रकृति उसके स्वरूप एवं महत्व की सूचना विवेचना है। इसके अंतर्गत केवल देश में लागू होने वाली विधि का ही अध्ययन किया जाता है। अर्थात अंतर्राष्ट्रीय विधि इसके दायरे से बाहर है।
उनके विधिवेत्ताओं ने विभिन्न अध्ययन पद्धतियां अपनाकर विधिशास्त्र के वर्गीकरण का प्रयास किया है। कदाचित इसी कारण कभी-कभी वर्गीकरण में अंतर आ जाता था।
इस प्रमुख विशेषताओं में कीटन, हालैंड, ऑस्टिन व सामण्ड के नाम से अग्रिम पंक्ति में है।
विधिशास्त्र का निम्न प्रकार से वशीकरण किया गया है।
1- ऐतिहासिक विधि शास्त्र
2-सामाजिक विधिशास्त्र
3-विश्लेषण विधि शास्त्र
4-सामान्य विधिशास्त्र
5-विशिष्ट विधिशास्त्र
6-वैधानिक संस्थागत विधिशास्त्र
7-अर्थ शास्त्रीय विधि शास्त्र
8-नैतिक विधिशास्त्र
9-तुलनात्मक विधि शास्त्र
(1) ऐतिहासिक विधि शास्त्रशास्त्र- ऐतिहासिक विधिशास्त्र के प्रमुख समर्थकों में सेविनी, हेनरी, मेन जी०सी० ली तथा पुत्वा प्रमुख हैं। ऐतिहासिक विधि शास्त्र के अंतर्गत विदिशा के ऐतिहासिक तत्वों का संकलन कर उसकी उत्पत्ति एवं विकास का अध्ययन किया जाता है। जिसके अंतर्गत उसने उन विभिन्न सामाजिक संस्थानों का भी अध्ययन किया जाता है जो कि कानून को विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त करती है अतः एक दृष्टिकोण से ऐतिहासिक विधि शास्त्र के मूल तत्व आचार और आचरण के तरीके हैं। इस पत्थर के विचारक यह मानते हैं कि कानून बनाया नहीं जाता है वरन उस का क्रम सा विकास होता है पता कानून के अस्तित्व को मानव सभ्यता के उद्भव से आरंभ हुआ मारकर आधुनिक विद्वानों की विचारधारा तक जुड़ा हुआ समझा जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि बहुत से प्रश्नों का जैसे कि कानून की उत्पत्ति कब हुई उसकी उत्पत्ति में क्या क्या कारण थे उसका विकास किया प्रकार से हुआ और संबंधित विकास क्रम से क्या-क्या सुधारवादी प्रक्रिया हुई अध्ययन किया जाना ऐतिहासिक विधि शासकीय प्रमुख विषय वस्तु है।
सेविनी का विचार है की विधि राष्ट्रीय चेतना या जनता वृद्धि की उत्पत्ति है।
law is an organic growth, emerges out of the consciousness of the people and learning plainly upon it is a sign of its nationality particularly.
पुत्वो का कथन की विधि किसी समुदाय के रहने वाले लोगों की सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। इस बात का समर्थन है, की विधि निर्माण में जन भावना को समाहित करना उतना ही आवश्यक है, जितना विधि का पड़ने वाला प्रभाव।
सर हेनरी मेन ऐतिहासिक प्रणाली के रूप में विधि खोज को एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हम इतिहास के बारे में मेन का अत्यंत संतुलित दृष्टिकोण पाते हैं। सेविनी ने जिस समुदाय और विधि का मध्य संबंध स्थापित किया था, मेन उसको और आगे बढ़ाते गए। जी० सि०ली के अनुसार विधिशास्त्र उन धारणाओं पति की खोज करता है। जो संसार की विधि व्यवस्था का अंग बन चुकी है। तथा उसको जन्म देने वाली परिस्थितियों का भी विवेचन करता है।
ऐतिहासिक विधि की विशेषताएंविशेषताएं-
जितने भी ऐतिहासिक विचारधारा के भीतर आने वाले उनके विशिष्ट विधि शास्त्री हैं। और उनके विचारों में अंतर भी हैं। फिर भी एक तथ्य सामान्य है। कि विधिशास्त्र लोग भाषा एवं आचार्य की भांति अपना स्वरूप ग्रहण करती हैं। एवं परिस्थिति के अनुकूल विकसित होती हैं। यह मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा से उत्पन्न नहीं होती वरन् यह सामूहिक इच्छा की अभिव्यक्ति है। ऐतिहासिक विचारधारा ने आने वाली विचारधाराओं का मार्ग प्रशस्त किया है।
(2) सामाजिक विधिशास्त्र-
समाजशास्त्रीय विचारधारा में गत सताब्दी के अंत में उत्पन्न हुए अनेक विधिक चिंतनो का योगदान है। यह चिंतन एक रुप ना होकर उन में बिखराव पाया जाता है। यद्यपि आगस्ट काम्टे, हरबर्ट स्पेंसर, ड्यूग्वि, गीर्यक, हौस, इहरिंग, भूमि एहरलिच, रास्को पाउण्ड, पुश्किन आज ने महत्वपूर्ण योगदान और विधिशास्त्र की समाजशास्त्रीय के आधीन विध्यात्मक विधि और न्याय के आदेशों के बीच समन्वय स्थापित किया।
अगस्त काम्टे को समाज शास्त्र के पिता सबसे पहले विधि शास्त्रियों ने ही कहा इनके अनुसार काम्टे ने सर्वप्रथम समाजशास्त्र का प्रयोग किया था। काम्टे की रीति को वैज्ञानिक विधि आत्मक कहा गया। विधि क्षेत्र में काम करने आगे आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा दी।
हरबर्ट स्पेंसर के अनुसार
समाजशास्त्र के साथ विधि के संबंध की दृष्टि से विधि के अध्ययन से विधिक चिंतन को एक नया आयाम मिला और उसने विधिशास्त्र के एक समाजशास्त्र कहे जाने योग्य बताया।
ड्यूग्वि के अनुसार
विधि का एक ऐसा नियम है, जिसे मनुष्य किसी श्रेष्ठ तर सिद्धांत चाहे वह जो कुछ भी हो भलाई हित का सुख के कारण नहीं, अपितु तथ्यों की व्यवस्था विवशता के कारण रखते हैं। क्योंकि वह समाज में रहते हैं। और समाज में ही रह सकते हैं। ड्यूग्वि के अनुसार विधि का सार कर्तव्य है।
गीयर्क- गिर्यक एक जर्मन विधि शास्त्री था। वह समूह व्यक्तित्व की वास्तविकता के सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध था। गिर्यक के अनुसार एक सामाजिक और विधिक सत्ता के रूप में समूह का वास्तविक व्यक्तित्व होता है।
इहरिंग के अनुसार
विधि का विकास उसकी उत्पत्ति के समान ही ना हो तो स्वतः होता है। और ना ही शांतिपूर्ण विधि से हियरिंग का कथन है। कि विधि समाज के जीवन की स्थितियों की गारंटी है। जो राज्य की बाध्यता की शक्ति द्वारा सुनिश्चित होती है।
रास्को पाउंड- समाजशास्त्रीय विधिशास्त्र के क्षेत्र में पाउंड अमेरिकन नेता माना जाता है। पाउंड के अनुसार विधि का कार्य सामाजिक इंजीनियरिंग है। सामाजिक इंजीनियरिंग से पाउंड का तात्पर्य समाज में प्रतिस्पर्धा रखने वाले हितों के बीच एक संतुलन से है।
समाजशास्त्रीय विचारधारा की विशेषताएं- यह विचारधारा विधि को सामाजिक प्रगति में एक साधन के रूप में मानती है। इसीलिए इसके अध्ययन का क्षेत्र व्यापक है। इस चिंतन में समाज के लिए व्यक्ति और व्यक्ति के लिए समाज पर जोर दिया गया है।
(3) विश्लेषणात्मक विधिशास्त्र- जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है। कि इस विधिशास्त्र में विधि की प्रसिद्ध मान्यताओं का विश्लेषण किया जाता है। इसके प्रमुख विचारक जॉन ऑस्टिन है। ऑस्टिन के अनुसार विध्यात्मक विधि ही विधिशास्त्र की विषय वस्तु है। विधिशास्त्र विद्यार्थियों विधि का सामान्य विज्ञान है जिसे उचित तौर पर विधि कहा जा सकता है।
ऑस्टिन ने विश्लेषण को विधिशास्त्र का मुख्य कार्य आना है।
ऑस्टिन की विधि की परिभाषा कीजिए संप्रभु का समावेश है। क्या संकेत देती है। कि सभ्य समाजों की विधि प्रणालियां ही विधिशास्त्र की उचित विषय वस्तु हो सकती है। ऑस्टिन ने परवर्ती विधिशास्त्रियों को अध्ययन के आधार भूमिका प्रदान की स्वयं ऑस्टिन के सिद्धांतों में सुधार हुआ। और उन्होंने एक अपेक्षाकृत अधिक व्यावहारिक और तर्कपूर्ण आधार स्वीकार किया। ऑस्टिन के अनुसार कोई विधि अपने उचित अर्थ में मानों कार्यों का एक सामान्य नियम है। जो किसी विहित प्राधिकारी द्वारा लागू किए जाने वाले बाह्य कार्यों को भी विचार में लेती है।
सामण्ड के अनुसार, विधिशास्त्र नागरिक विधि का विज्ञान है और कोई भी नागरिक विधि तब तक कसौटी पर खरी नहीं उतरती जब तक उसका उचित विश्लेषण करके सही निष्कर्ष ना निकाला जाए।
विश्लेषणात्मक विचारधारा की विशेषताएं- इस विचारधारा ने विधि के संबंध में नए युग का सूत्रपात किया है। अपनी सरलता संगत तथा विवेचना की स्पष्टता के कारण इस सिद्धांत का व्यापक प्रसार हुआ है। एवं उसका प्रभाव भी बड़ा विश्लेषणात्मक सिद्धांत ने विधि के पश्चात व्रती विचारधारा की आधार भूमिका प्रदान की इसने आधुनिक काल के अन्य प्रचलित विधिक विचारधाराओं के प्रेरणा स्रोतों का काम किया।
(4) सामान्य विधि शास्त्रशास्त्र- सामण्ड के अनुसार विधि शास्त्र के अध्ययन में अनेक प्रक्रियाएं आ जाती हैं। लेकिन शब्द जिसका अर्थ नागरिक विधि से ही है। जो इसे civil law कहा जाता है। और civil law भी इसीलिए कहते हैं। कि इसका संबंध civitas या state शब्दों से है। यदि विज्ञान शब्द का तात्पर्य किसी विषय के क्रम बन्द ग्यान से है, तो इसे विधि का विज्ञान कहते हैं।
(jurisprudenceis a science of civil law.)
(5) विशिष्ट विधिशास्त्र- सामान्य के अनुसार विशिष्ट अर्थों से अभिप्राय विधि प्रक्रियाओं से संबंधित एक निश्चित और वैधानिक अध्ययन की एक विशिष्ट शाखा से है। यदि उपरोक्त कथन को स्वीकार कर लिया जाए तो वैधानिक सिद्धांतों की परिचयात्मक शाखा ही विधिशास्त्र की विषय वस्तु है। सामान्य के अनुसार इस को सामान्य एवं सर्व भौमिक विधिशास्त्र की भी संज्ञा दी जाती है।
(6) वैधानिक संस्थागत विधिशास्त्र वैधानिक संस्थाओं के आरंभिक विकास से संबंधित इस विधि में विभिन्न संगठनों पर परिस्थितियों के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है।
(7) अर्थशास्त्रीय विधिशास्त्र- यद्यपि या कोई विधिशास्त्र की परंपरागत अथवा संस्थागत शाखा नहीं है। फिर भी विधि के स्वरूप और महत्व को निर्धारित करने के लिए आर्थिक दृष्टिकोण को सहारा लेने के कारण इसे समाजशास्त्रीय विधिशास्त्र का अंग माना जाता है। कार्ल मार्क्स एवं एंजल ने सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा के जो तत्व प्रस्तुत किए हैं उन्हीं के आधार पर परी नियमित विधि और 98 रन की व्याख्या की जानी चाहिए।
इस शाखा के समर्थकों का मानना है। कि वर्ग विहीन समाज की स्थापना के पश्चात कानून स्वता ही समाप्त हो जाता है।
वर्ग विभेद ही कानूनी या विधि का वास्तविक जनक है और तब तक वर्ग विभेद रहेगा विधि नए नए रूपों में व सिद्धांतों के साथ प्रस्तुत की जाएगी।
(8) नैतिक विधिशास्त्र- इस पद्धति के समर्थकों में इंग्लैंड के सर हेनरी बंधन का नाम प्रमुख है। बेन्थन का विधि दर्शन उपयोगिता वादी व्यक्तिवादी कहलाता है। बेन्थन यथार्थवादी थे। और उनके कार्यकलापों के अनेक रूप थे। बेन्थन के अनुसार विधि का प्रयोजन सुख को लाना है। और दुख को हटाना है। सुख और दुख में अंतिम मापदंड हैं। जिन पर कोई विधि पर की जानी चाहिए।
यद्यपि अपने सिद्धांतों को प्रतिपादित करने में बंधन ने अथक प्रयास किए तथापि उन्हें अनेक आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
यहां तक उन पर आरोप लगाया गया कि उनकी बातें ना तो विश्वासप्रद है, और ना ही व्यवहारिक आलोचना के मत में केवल सुख और दुख विधि को परखने के लिए कसौटी नहीं हो सकती। इन सब के बावजूद ऑस्टिन बेन्थन का र है।
(9) तुलनात्मक विधि शास्त्र – इस सिद्धांत को भी हम प्रमाण परंपरागत ना कहते हुए सुविधा के लिए खोजा गया सिद्धांत कह सकते हैं इसके अंतर्गत अनेक विधियों या विधि व्यवस्थाओं का संकलन कर उनका तुलनात्मक अध्यन किया जाता है।प्रत्येक स्थान की परिस्थिति व विधि प्रणाली दूसरे स्थान से भिन्न होती है। अतः अधिक से अधिक विषय वस्तु के समय तुलनात्मक अध्ययन से ही विधि निर्माण हेतु सही निष्कर्ष निकल सकता है।।।
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